देख नहीं सकती, सुन नहीं सकती, बोल नहीं सकती… फिर भी बन गई सरकारी अफसर! ये है ‘इंदौर की Helen Keller’ की कहानी

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Helen Keller of Indore: देश की पहली ऐसी बेटी बनीं गुरदीप, जिन्होंने तीनों शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद साबित किया कि हौसले के आगे कोई भी कमी मायने नहीं रखती!

भारत में हज़ारों लोग सरकारी नौकरी के लिए सालों मेहनत करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जो तीनों इंद्रिय-अक्षम (न देख सकते हैं, न सुन सकते हैं, न बोल सकते हैं) होने के बावजूद अपने हौसलों से इतिहास रच देते हैं। इंदौर की गुरदीप कौर वासु ऐसी ही एक मिसाल बनकर सामने आई हैं, जिन्हें अब ‘इंदौर की Helen Keller’ कहा जा रहा है।

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कौन हैं गुरदीप कौर वासु?

गुरदीप कौर वासु, उम्र 34 वर्ष, न बोल सकती हैं, न सुन सकती हैं और न ही देख सकती हैं। लेकिन इन तीन बड़ी शारीरिक बाधाओं के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वर्षों तक सामाजिक चुनौतियों, शैक्षणिक रुकावटों और सरकारी सिस्टम की पेचीदगियों से जूझने के बाद अब उनका सपना साकार हो गया है।

सरकारी नौकरी में मिली ऐतिहासिक सफलता

गुरदीप को मध्य प्रदेश सरकार के वाणिज्यिक कर विभाग में नौकरी मिली है। यह नियुक्ति सिर्फ उनके लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गई है। ये पहली बार है जब इतनी गहरी अक्षमताओं के बावजूद किसी महिला ने सरकारी सिस्टम में अपनी जगह बनाई है।

परिवार और समाज का योगदान

गुरदीप के संघर्ष में उनके परिवार का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने अपने जीवन के हर मोड़ पर गुरदीप को सहयोग दिया, चाहे वो शिक्षा हो या सरकारी नौकरी की प्रक्रिया। साथ ही, सामाजिक संगठनों और स्पेशल एजुकेशन संस्थानों ने भी उन्हें हर उस चीज़ तक पहुँचाने में मदद की, जो आम लोगों को सहज रूप से मिल जाती है।

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हिम्मत और हौसले की मिसाल

जहां बहुत से लोग छोटी-छोटी परेशानियों में हार मान लेते हैं, वहीं गुरदीप ने अपने जीवन के सबसे बड़े संकटों को भी ठोस इरादों और संकल्प के साथ पार किया। उन्होंने यह साबित किया कि अगर इरादा मजबूत हो तो न कोई अक्षमता बाधा बनती है, न ही कोई सिस्टम।

क्यों कहा जा रहा है उन्हें ‘भारत की हेलेन केलर’?

देख नहीं सकती, सुन नहीं सकती, बोल नहीं सकती… फिर भी बन गई सरकारी अफसर! ये है ‘इंदौर की Helen Keller’ की कहानी
इंदौर की Helen Keller

हेलेन केलर अमेरिका की एक मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जो खुद भी देख, सुन और बोल नहीं सकती थीं। लेकिन उन्होंने पूरी दुनिया को प्रेरणा दी। गुरदीप की कहानी उसी रास्ते पर चलती है – जहां शारीरिक सीमाएं हैं, लेकिन आत्मबल असीम है। यही वजह है कि उन्हें अब भारत में ‘इंदौर की Helen Keller’ कहा जा रहा है।

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Helen Keller- देश के लिए एक मैसेज

गुरदीप की इस सफलता ने पूरे सिस्टम को एक आईना दिखाया है कि समावेशी विकास तभी संभव है जब हर व्यक्ति को बराबरी का अवसर मिले, चाहे उसकी शारीरिक स्थिति कुछ भी हो।

निष्कर्ष

गुरदीप कौर वासु (इंदौर की Helen Keller) की यह सफलता सिर्फ एक नौकरी पाने की कहानी नहीं है। यह संघर्ष, साहस और आत्मबल की ऐसी मिसाल है जो लाखों दिव्यांग और सामान्य नागरिकों को यह सोचने पर मजबूर कर देती है — अगर वो कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं?

Disclaimer: यह लेख सोशल मीडिया और विश्वसनीय समाचार स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है। TrickyKhabar.com इस विषय से संबंधित किसी भी तथ्यात्मक गलती की ज़िम्मेदारी नहीं लेता। पाठकों से अनुरोध है कि वे अंतिम पुष्टि संबंधित आधिकारिक स्रोतों से करें।

इंदौर से राज प्रजापति की रिपोर्ट
Tricky Khabar मीडिया

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